भारत की धरती पर हजारों चमत्कारी मंदिर है. जिनके प्रति उनके भक्तों की आस्था काफी मजबूत है. क्या आपने कभी सुना है कि किसी देवी की प्रतीमा रजस्वला होती है? दरअसल, हम बात कर रहे है असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या देवी मंदिर की. कहा जाता है कि इस मंदिर में देवी की प्रतीमा हर साल रजस्वला होती है. आपको यह सुनकर हैरानी होगी. लेकिन इस बात के साक्ष्य भी प्राप्त है.कामाख्या मंदिर असम के नीलांचल पर्वत पर स्थित है. जो माता सति को समर्पित है. यह मंदिर माँ सति के 52 शक्तिपीठों में से एक है. कहा जाता है कि 52 शक्तिपीठ माता सति के अलग-अलग अंग है.
कैसे आया यह मंदिर अस्तित्व में?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह कहानी राजा दक्ष के महल से शुरु होती है. दरअसल, हुआ यह था कि उस समय माँ सति राजा दक्ष की पुत्री थी और भगवान शिव उनके पति थे. एक दिन राजा दक्ष के महल में यज्ञ का आयोजन था और राजा दक्ष ने सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों को आमंत्रित किया था. लेकिन उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया. यह बात नारद मुनि ने मां सति को बताई और नारद मुनि ने माता से कहा, “ हे भगवति, आप तो राजा दक्ष की पुत्री है आपको निमंत्रण की क्या आवश्यकता. आप और भगवान भोलेनाथ भी महाराज दक्ष के महल आ जाइए” नारद की यह बात सुनकर माता ने भगवान शिव से बात की. लेकिन भोलेनाथ ने अपने अपमान के कारण जाने से मना कर दिया. अपने पति के अपमान को लेकर माँ सति बहुत क्रोध में थी.
इसी क्रोध में वह अपने पिता के महल गई. जब माता सति ने राजा दक्ष से अपने पति के हुए अपमान का कारण पूँछा तो राजा दक्ष ने भगवान भोलेनाथ के लिए काफी अपशब्द बोला. इस अपमान से माता सति ने क्रोध में आकर यज्ञकुण्ड में छलांग मार अपने देह की आहूति दे दी. माता सति के प्राणाहुति के बाद शिव जी ने क्रोध में अपना तीसरा नेत्र खोल लिया. पूरे ब्रम्हाण्ड में प्रलय व हाहाकार मच गया. शिव जी के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को भी भगवान शिव की निंदा सुनने की सजा दी. भगवान शिव ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी होकर सारे भूमंडल के चक्कर लगाने लगे.
सती का शव लिए शिव पृथ्वी पर घूमते हुए तांडव करने लगे. जिससे पृथ्वी पर प्रलय आने लगी. पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता के शरीर के तुकड़े कर उन्हें धरती पर गिरा दिए. भगवती सती ने शिवजी को दर्शन दिए और कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के अंग अलग होकर गिरेंगे, वहीं महाशक्तिपीठ का उदय होगा. इनमें से एक शक्तिपीठ कामाख्या देवी है. यहाँ माता की योनी गिरी थी. यह माता की सबसे शक्तिशाली शक्तिपीठ मानी जाती है.
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तीन हिस्सों में बना है मंदिर
कामाख्या मंदिर के तीन हिस्सें है. जिसमें से पहला हिस्सा सबसे बड़ा है. इसमें हर व्यक्ति को जाने की अनुमति नहीं है, वहीं दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं. जहां एक पत्थर से हर वक्त पानी निकलता है. माना जाता है कि महीनें के तीन दिन माता को रजस्वला होता है. जिसके दौरान मंदिर के पट बंद रहते है. यानि की तीन दिनों तक मंदिर के अंदर किसी को जाने की अनुमति नही है. तीन दिन बाद दुबारा बड़े ही धूमधाम से मंदिर के पट खोले जाते है. और माता की प्रतीमा को स्नान कराया जाता है.
अनोखा है इस मंदिर का प्रसाद
देश में लड़कियों को उनके रजस्वला के दौरान अछूत और अपवित्र माना जाता है. लेकिन कामाख्या मंदिर के मामले में ऐसा कुछ भी नहीं है. जब मां को रजस्वला होता है तो उस दौरान मंदिर बंद करने से पहले मां मंदिर के अंदर एक सफेद रंग का कपड़ा बिछा दिया जाता है. उसके बाद जब 3 दिन बाद मंदिर के पट खुलते है तो वह सफेद रंग का कपड़ा लाल रंग में बदला दिखता है. इस ही कपड़े को अंबुबाची वस्त्र कहते है. यही वस्त्र भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है.
इसी कारण अंबुबाची के नाम से मेले का भी आयोजन किया जाता है. इस मेले के दौरान स्थित ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल रंग का हो जाता है. नदी के पानी का यह लाल रंग कामख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है.