क्या आज भी हमारे बीच जीवित हैं भगवान कृष्ण? जानिए

दुनियाभर के लिए भारत आस्था और धर्म का केंद्र है. साथ ही, भारत के कई मंदिर काफी रहस्यों से भरे हुए है. यहाँ तक की वैज्ञानिक भी इन रहस्यों का आजतक पता नहीं लगा पाए. ठीक ऐसा ही एक रहस्यमयी मंदिर ओडिशा के पुरी में जगन्नाथपुरी के नाम से स्थित है, जिसकी मुर्ति में भगवान कृष्ण का दिल आज भी धड़कता है. आमतौर पर जब भी कोई जीवित प्राणी अपना शरीर त्याग देता है, तो उस ही के साथ उसकी हृदय गति भी रूक जाती है. लेकिन भगवान कृष्ण के शरीर त्यागने के बाद भी उनका हृदय धड़कना बंद नहीं हुआ. अब यह सुनकर आप भी हमारी तरह अचंबित हो गए होंगे. लेकिन पुराणों में दी गई जानकारी और कुछ घटनाओं के तथ्य इस बात को साबित करते है.

कौन है भगवान जगन्नाथ?

भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण का ही रूप माना जाता है. यह मंदिर ओडिशा के पुरी में स्थित है. इस मंदिर में भगवान कृष्ण अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान है. आमतौर पर, बाकी मंदिरों में भगवान की मूर्तियों को अष्टधातु से बनाया जाता है. लेकिन जगन्नाथ मंदिर में भगवान की मुर्तियों का निर्माण नीम की लकड़ियों से किया गया है. माना जाता है कि मालवा के राजा इंद्रद्युम्न को सपने में श्रीकृष्ण ने नीम के पेड़ के लट्ठे से अपनी और अपने भाई-बहन बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां बनाने का आदेश दिया था, तब राजा इंद्रद्युम्न ने यह मंदिर बनवाया था.

कैसे जीवित है भगवान कृष्ण का हृदय?

द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण का अवतार लिया तो यह उनका मानव रूप था. ज़ाहिर सी बात है कि सृष्टि पर जन्में हर एक व्यक्ति का अंत निश्चित है. इसलिए भगवान कृष्ण का भी अंत निश्चित था. भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के ठीक 36 सालों बाद अपना देह त्याग दिया. जब पांडवों ने उनका अंतिम संस्कार किया तो श्रीकृष्ण का पूरा शरीर तो अग्नि में समा गया, लेकिन उनका हृदय तब भी धड़क रहा था. बह्म के हृदय को अग्नि जला नहीं पायी. इस दृश्य को देखने के बाद पांडव अंचभित रह गए. तब आकाशवाणी हुई कि यह हृदय ब्रह्म का है इसे समुद्र में प्रवाहित कर दें। इसके बाद पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण के हृदय को समुद्र में प्रवाहित कर दिया. तब यह हृदय समुद्र में बहता हुआ ओडिशा के पुरी पहुँचा.

मूर्ति में धड़कता है भगवान जगन्नाथ का दिल

जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ के साथ उनके भाई-बहन बलभद्र और सुभद्रा की मुर्तियां भी विराजमान है. इन मुर्तियों को हर 12 सालों में बदला जाता है. तीनों मुर्तियों की हर एक चीज बदली जाती है. लेकिन सिर्फ एक चीज है जो कभी नहीं बदलती. वो है ब्रह्म पदार्थ. ब्रह्म पदार्थ को भगवान कृष्ण का हृदय माना जाता है. मंदिर के पुजारियों का कहना है कि जब वह भगवान की मुर्तियों को बदलते है, तो वह भगवान जगन्नाथ की मुर्ति में से उनका ब्रह्म पदार्थ निकालकर नई मुर्ति में डाल देते है.

ब्रह्म पदार्थ क्या है?

ब्रह्म पदार्थ भगवान कृष्ण का हृदय है. यह अष्टधातु से बना है. कहा जाता है कि यह जीवित अवस्था में है और आज भी धड़कता है. मंदिर के कुछ पुजारियों का यह भी कहना है कि अगर कोई इस ब्रह्म पदार्थ को अपनी आंखों से देख लेता है तो या तो वह नेत्रहीन हो जाता है या फिर उसकी मृत्यु हो जाती है. इसलिए, ब्रह्म पदार्थ बदलते समय पूरे शहर की बत्ती काट दी जाती है. साथ ही, पुजारी अपने आंखों पर रेशम की पट्टी बांध कर ही ब्रह्म पदार्थ को भगवान की नई मुर्ति में डालते है. मंदिर के पुजारी का यह भी कहना है कि जब वह भगवान के हृदय को नई मुर्ति में रखने के लिए अपने हाथ में लेते है तो उन्हें ऐसा महसूस होता है जैसे उनके हाथ में कुछ उछल रहा है.

मंदिर के कुछ हैरान कर देने वाले रहस्य

इस मंदिर का सबसे बढ़ा रहस्य यह है कि मंदिर के शिखर पर स्थित झंडा हमेशा उलटी दिशा में लहरता है. आमतौर पर देखा जाए तो दिन के समय हवा समुद्र से धरती की तरफ चलती है और शाम को धरती से समुद्र की तरफ. लेकिन यहां यह प्रक्रिया एकदम उल्टी है. अब ऐसा क्यों है इस बात का पता आज तक नहीं लगा. ऐसे ही मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र लगा है. जो हर दिशा से एक जैसा दिखाई देता है. आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि इस शिखर की छाया कभी नहीं दिखाई देती.

यह भी कहा जाता है कि समुद्र पास होने के बावजुद इसकी लहरों की आवाज़ मंदिर के अंदर सुनाई नही देती. मंदिर से कदम बाहर निकालते ही समुद्र की लहरों की आवाज़ स्पष्ट सुनाई देती है. इस मंदिर की सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि इस मंदिर के ऊपर से न कोई पक्षी गुजरता है और न ही कोई हवाई जहाज. इस मंदिर के रहस्यों की सबसे दिलचस्प बात यह है कि यहाँ भक्तों के लिए प्रसाद पकाने के लिए सात बर्तनों को एक-दूसरे के ऊपर रखा जाता है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि सबसे ऊपर रखा हुआ बर्तन पहले पकता है. इसके अलावा यह हर दिन एक ही मात्रा में प्रसाद बनता है. फिर चाहे हज़ारों की संख्या में भक्त आए या लाखों की संख्या में. लेकिन, प्रसाद फिर भी कभी कम नहीं पड़ता.