नवरात्रि का पंचम दिन मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता की पूजा के लिए समर्पित होता है। शास्त्रों में माना गया है कि स्कंदमाता की आराधना से संतान सुख प्राप्त होता है और संतान को दीर्घायु मिलती है। यही वजह है कि माता को संतान सुख की दात्री भी कहा जाता है।
स्कंदमाता का स्वरूप बेहद दिव्य है। वे पूरी तरह से सफेद रंग में दिखाई देती हैं और कमल के पुष्प पर विराजमान रहती हैं। इस कारण उन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। मां की चार भुजाएं हैं। ऊपर की दाहिनी भुजा में वे अपने पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) को धारण करती हैं। एक हाथ अभय मुद्रा में है, जबकि बाकी हाथों में कमल का पुष्प है।
स्कंदमाता पूजा का शुभ मुहूर्त 2025
वैदिक पंचांग के अनुसार, नवरात्रि का पांचवां दिन इस साल 26 सितंबर को है। इस दिन रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। मान्यता है कि ऐसे शुभ योग में स्कंदमाता की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
स्कंदमाता का प्रिय भोग
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, स्कंदमाता को पीले रंग की वस्तुएं बेहद प्रिय हैं। इसलिए भक्त इस दिन उन्हें पीले रंग की मिठाई का भोग लगाते हैं। खासकर केसर वाली खीर अर्पित करना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से माता प्रसन्न होती हैं और भक्तों पर विशेष कृपा बरसाती हैं।
स्कंदमाता की पूजा न केवल संतान सुख देती है बल्कि जीवन से नकारात्मकता भी दूर करती है। जो साधक श्रद्धा और भक्ति से उनका स्मरण करता है, उसे आत्मिक शांति और सफलता का मार्ग मिलता है। नवरात्रि के इस दिन मां की कृपा से घर में सकारात्मकता का संचार होता है और हर संकट दूर हो जाता है।
मां स्कंदमाता का पूजा मंत्र
सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
स्कंदमाता की आरती (Skandmata Ki Aarti)
जय तेरी हो स्कंद माता। पांचवा नाम तुम्हारा आता।।
सब के मन की जानन हारी। जग जननी सब की महतारी।।
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं। हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं।।
कई नामों से तुझे पुकारा। मुझे एक है तेरा सहारा।।
कही पहाड़ो पर हैं डेरा। कई शहरों में तेरा बसेरा।।
हर मंदिर में तेरे नजारे। गुण गाये तेरे भगत प्यारे।।
भगति अपनी मुझे दिला दो। शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो।।
इंद्र आदी देवता मिल सारे। करे पुकार तुम्हारे द्वारे।।
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आएं। तुम ही खंडा हाथ उठाएं।।
दासो को सदा बचाने आई। ‘चमन’ की आस पुजाने आई।।